Wednesday, May 27, 2015

बिसरे भूले दिन आज फिर याद आये उन्हें

गाँवो में ऐसी गर्मी की रातो में छत पे सोये सोये तारो को देखना, फिर जिस दिन स्कूल में गुरु जी से सप्तर्षि तारो के समूह के बारे में जाना उसके बाद वो सात तारे अपनी खास जान पहचान वाले तारो से लगने लगे थे, 
रात को उस सप्तऋषि तारो के समूह को देखते हुये सोने की आदत कई सालो तक बरक़रार रही, 
रात को गांव के तालाब के पास वाले पीपल और नीम के पेड़ो से बह कर आने वाली ठंडी हवाओ के झोंको से टकरा कर हम कब अपनी सपनो की दुनिया में खो जाते थे पता भी न चलता था,
और नींद सुबह चिड़ियों की चहचहाहट, गायों के गले की घंटियों और सूर्य देव के आने की आहट से ही खुलती थी,
वैसे इनमे एक साइंस ये भी था की सुबह चिड़ियों की चहचहाहट और गाय के गले की घंटियो की आवाज़ से हर जगह पॉजिटिव ऊर्जा का संचार होता है, हमारे बड़े बुजुर्ग कितने विद्वान थे इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है,
उस सुकून भरी नींद के लिए न तो कभी हीट स्प्रे करने की जरुरत पड़ी न कभी आल आउट जलाने की,
अब के इन महंगे ऐसी और महंगे बिस्तरो में भी सोते वक़्त हमे कल की चिंता, फ्यूचर के लिए इन्वेस्टमेंट, टैक्स सेविंग, बच्चों के भविष्य की चिन्ता के झोंको में टकरा कर कब नींद लग जाती है पता ही नहीं चलता, और अगले दिन सुबह से हम अपने उस अंजान से डर के लिए मशीनों की तरह दौड़ भाग जारी रखते हैं,
जिंदगी तब भी बहुत स्मूथ थी जब हम बेपरवाह हुआ करते थे,
तब और आज में फर्क ये है, तब हम प्लांनिग किया करते थे और अब चिंता,
जो चीजे जैसी हैं उन्हें वैसे ही चलने दीजिये क्योंकि वो महज़ हमारे चिंता करने से नहीं सुधारी जा सकती हैं,
इसीलिए हमारे गुरु जी कहते थे, इस दुनिया की सत्ता चलाने वाले पर इतना भरोसा रखियेगा जिस दिन स्थितियां आउट ऑफ़ कन्ट्रोल होगी उस दिन वो भी आप को स्तिथियों को आउट ऑफ़ आर्डर जाकर कंट्रोल करने लायक सक्षम बना ही देगा